सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को चेतावनी दी कि उन्हे सरकार से बातचीत करनी ही पड़ेगी

नई दिल्ली,               सुप्रीम कोर्ट ने जहां किसानों के प्रदर्शन के अधिकार को स्वीकार किया वहीं उन्हें यह भी चेतावनी दी कि वे बातचीत किए बिना विरोध प्रदर्शन को वर्षों तक नहीं खींच सकते। कोर्ट ने कहा, उन्हे सरकार से बातचीत करनी ही पड़ेगी, आखिर विरोध का एक मकसद होना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करने वालों से दूसरों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार पुलिस और प्रशासन को दिया गया है। यदि किसानों को इतनी ज्यादा संख्या में शहर में आने की अनुमति दी गयी तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि वे हिंसा का रास्ता नहीं अपनायेंगे। कोर्ट इसकी गारंटी नहीं ले सकता।

कोर्ट उन दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिसमे दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों को हटाने की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान अदालत ने 1988 में राजधानी में बोट क्लब पर हुए किसानों के विरोध प्रदर्शन का जिक्र किया और कहा कि उस समय इस आंदोलन से पूरा शहर ठहर गया था।

पीठ ने भारतीय किसान यूनियन (भानु), अकेला किसान संगठन जो कोर्ट में है, से कहा कि विरोध प्रदर्शन का मकसद तभी हासिल किया जा सकेगा जब किसान और सरकार बातचीत करें, हम इसका अवसर मुहैया कराना चाहते हैं। हम उच्च स्तरीय समिति बनाएंगे और उसमें पी साईनाथ और अन्य कृषि विशेषज्ञों को शामिल करेंगे, जो कानूनों मे व्याप्त कमियों को हल खोजेंगे।लेकिन ये बातचीत से ही होगा। सुनवाई के शुरू में ही कोर्ट ने कहा कि हम कानूनों की वैधता पर फैसला नहीं करेंगे, बल्कि लोगों के निर्बाध आवागमन के बारे में विचार करेंगे।

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