दिल्ली के बाद पटना एम्स में होगा प्लाज्मा थेरेपी से इलाज

पटना, दिल्ली के बाद अब बिहार सरकार पटना एम्स में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करन के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल करने की योजना बना रही है। इस बात की जानकारी प्रमुख स्वास्थ्य सचिव संजय कुमार ने दी। वहीं दिल्ली में इस थेरेपी के शुरुआती नतीजे उत्साहजनक आए हैं। जिससे कोरोना वायरस के गंभीर रूप से बीमार लोगों के इलाज के लिए उम्मीद की किरण नजर आई है।

राज्य में वायरस संक्रमण के 55 नए मामले सामने आने के साथ ही संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 225 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया कि मुंगेर जिले के 31, बक्सर जिले के नया भोजपुर में 14, नालंदा में तीन, पटना एवं औरंगाबाद में दो-दो, बांका, मधेपुरा और सारण में एक-एक कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सामने आए हैं।

उन्होंने बताया कि मुंगेर जिले के जमालपुर के सदर बाजार में जो कोरोना वायरस संक्रमण के 20 मामले सामने आए हैं उनमें 14 पुरुष और 16 महिलाएं हैं। उन्होंने बताया कि ये सभी लोग कोविड-19 मरीज के संपर्क में आने से संक्रमित हुए हैं और अब इनके संपर्क में आए लोगों की पता लगाया जा रहा है। संजय ने बताया कि मुंगेर जिले के गुमटी नंबर-2 निवासी एक महिला (64) में भी कारोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई है।

वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि कोविड-19 के चार रोगियों पर किए गए प्लाज्मा थेरेपी परीक्षण के प्रारंभिक नतीजे काफी उत्साहजनक हैं। जिससे कोरोना वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार लोगों के इलाज के लिए उम्मीद की किरण नजर आई है।

केजरीवाल ने एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अगले दो-तीन दिनों में प्लाज्मा थेरेपी के और अधिक नैदानिक परीक्षण किए जाएंगे और उनकी सरकार दिल्ली में कोविड-19 संक्रमण के सभी गंभीर रोगियों पर इस थेरेपी का इस्तेमाल करने के लिए केंद्र की मंजूरी लेगी। मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस उपचार पद्धति के लिए मंजूरी देगी।

प्लाज्मा थेरेपी से इलाज इस धारणा पर आधारित है कि वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इन एंटीबॉडीज की मदद से कोविड-19 रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है।

कोविड-19 में इलाज से ठीक हुए लोग ही इस थेरेपी में डोनर बन सकते हैं। इस थेरेपी के लिए जारी दिशा-निर्देश के मुताबिक, ‘किसी मरीज के शरीर से एंटीबॉडीज उसके ठीक होने के दो हफ्ते बाद ही लिए जा सकते हैं और उस रोगी का कोविड-19 का एक बार नहीं, बल्कि दो बार टेस्ट किया जाना चाहिए।’ ठीक हो चुके मरीज का एलिजा (एन्जाइम लिन्क्ड इम्युनोसॉर्बेन्ट ऐसे) टेस्ट किया जाता है जिससे उनके शरीर में एंटीबॉडीज की मात्रा का पता लगता है। लेकिन ठीक हो चुके मरीज के शरीर से रक्त लेने से पहले राष्ट्रीय मानकों के तहत उसकी शुद्धता की भी जांच की जाती है।

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